हमें कोरोना वायरस (कोविड-19) सर्वव्यापी महामारी के समय में क्या करना चाहिए?

हमें कोरोना वायरस (कोविड-19) सर्वव्यापी महामारी के समय में क्या करना चाहिए?

हाल ही में सारी पृथ्वी पर कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण हम एक तरीके से या दूसरे तरीके से प्रभावित हुए हैं। हम में से बहुतों की प्रतिक्रिया चिंता और भय है। परन्तु इसका प्रत्युत्तर देने का एक दूसरा मार्ग भी है-और वह परमेश्वर की खोज करना है।

परमेश्वर कहता है कि महामारी लोगों के लिए एक निश्चित अवसर को सूचित करती है कि ‘‘वे अपने आप को नम्र करे और प्रार्थना करे और मेरे मुख की खोज करें (2 इति- 7ः14)। ‘‘स्वयं शान्ति का परमेश्वर’’ (1 थिस- 5ः23) वह केवल स्वर्गों में नहीं बना रहना चाहता है, परन्तु वह चाहता है कि हम उसे पाएं वह हमारे लिए शान्ति हो। यीशु हमें बताता है कि, ‘‘तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो’’ (यूहन्ना 14ः1)। हमें व्याकुल नहीं होना है। हमें चिंता और भय में नहीं जीना है। एक दूसरा मार्ग भी है। ‘‘प्रभु निकट है’’ (फिल- 4ः5)।

परन्तु यदि परमेश्वर स्वर्गों में है तो वह हमारे करीब कैसे हो सकता है? बाइबल बताती है कि परमेश्वर हमारा जीवन और शान्ति होने के लिए कई चरणों से गुजरा। वह स्वर्ग से नीचे आया और यीशु नाम का मनुष्य बनने के लिए 2,000 वर्ष पहले देहधारी हुआ ताकि वह हमारे साथ जी सके और सीधे तौर पर मानव परिस्थितियों का अनुभव कर सके। यीशु ने इस पृथ्वी पर एक सिद्ध मनुष्य जीवन जिया (यूहन्ना 1ः1, 14) एक ऐसे आदर्श के रूप में कि मनुष्य का जीवन कैसा होना चाहिए-पाप के जहर से बेदाग, जो हमें कष्ट देता है, उस जहर के अधीन न रहें जो कि मृत्यु है। किसी दूसरे मानव ने इतिहास में मानवजाति को इतना प्रभावित नहीं किया है जितना यीशु ने किया है। जहां कहीं यीशु गया, वह उनके पास शान्ति ले गया जो उसकी खोज करते थे।

तब पाप और मृत्यु की समस्या का समाधान करने के लिए, यीशु क्रूस पर हमारे निमित्त हमारी जगह मृत्यु सहने के लिए गया (यश- 53ः4-6)। क्रूस पर, उसने पाप के जहर के लिए दिव्य विष-नाशक को उत्पन्न किया-जो कि उसका अनन्त जीवन है जिसे हमारे भीतर प्रदान करने के लिए मुक्त किया गया ताकि पाप और मृत्यु को निगल जाए। वह हमारे लिए मरा, हमारे पापों की हमें क्षमा करने के लिए ताकि हम पवित्र और धर्मी परमेश्वर के सामने शान्ति में हो (इफ- 2ः13-14) और नाश न हो, बल्कि उसमें विश्वास करने के द्वारा अनन्त जीवन प्राप्त करे (यूहन्ना 3ः16)। उसकी मृत्यु और पुनरूत्थान के माध्यम से, हम परमेश्वर के साथ और दूसरों के साथ शान्ति में हो सकते हैं। तब, अपने पुनरूत्थान की शाम, वह अपने चेलों के सामने प्रकट हुआ और कहा, ‘‘तुम्हें शान्ति मिले’’ और यह कहते हुए उनमें श्वास फूंका ‘‘पवित्र आत्मा ग्रहण करो (यूहन्ना 20ः21-22)।

अब, आज ‘‘वचन तुम्हारे निकट है, तुम्हारे मन में और हृदय में है--- कि यदि तुम यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करते हो और अपने हृदय में विश्वास करते हो कि परमेश्वर ने उसे मृतकों में जीवित किया है, तुम उद्धार पाओगे’’ (रो- 10ः8-9)। यीशु को अपनी शान्ति के रूप में ग्रहण करने और इस संसार में पाप, अन्धकार और मृत्यु से बचने का साधारण तरीका निम्नलिखित तरीके से प्रार्थना करना हैः

प्रभु यीशु मैं तुझ में विश्वास करता हूँ, मुझे पाप और मृत्यु से बचा प्रभु यीशु, मैं तुझे अपने जीवन और अपनी शान्ति के रूप में ग्रहण करना चाहता हूँ, मेरे अन्दर आने और मेरे भीतर जीने के लिए तेरा धन्यवाद करता हूँ!

यीशु को ग्रहण करने के लिए प्रार्थना करने के बाद, उससे नियमित रूप से संगति करने का अभ्यास कर सकते हैं। परमेश्वर के साथ संगति करना उस से सच्चे रूप से बात चीत करना है। ‘‘किसी भी बात की चिंता मत करो_ परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनति के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किये जाए’’ (फिल- 4ः6)। प्रार्थना में उसके पास आओ, अपनी सभी चिंताओं को उसके सामने खोलो और जो वह है और जो उसने किया है उसके लिए धन्यवाद करो। ऐसा करने में, आप उसके उद्धार में प्रवेश कर सकते हैं ‘‘तब परमेश्वर की शान्ति जो समझ से बिल्कुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी’’ (आ- 7)। 

परमेश्वर कौन है और यीशु में उसने हमारे लिए क्या किया है इसके बारे में और अधिक जानने के लिए, आप हमारी वेबसाइट से कुछ पुस्तकों को डाउनलोड कर सकते हैंः

https://www.rhemabooks.org/hi/free-christian-books/


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