बाइबल में यीशु का जीवन

जानें कि यीशु के जीवन के बारे में बाइबल क्या कहती है

हम से जुड़े यीशु के जीवन को देखने और बाइबल उसके जीवन के बारे में क्या कहती है। जाने किस प्रकार उसका जीवन आज आपके जीवन में संबंध रखता है।

हम सब ने परमेश्वर के बारे में सुना है, और बहुतो ने यीशु के बारे में सुना हैं। परंतु यह यीशु कौन है? क्या वह केवल एक मनुष्य और एक महान भविष्यवक्ता है जिसने बहुत से अच्छे कार्य किए और संसार को अपनी भली शिक्षओ द्वारा बदल दिया? क्या वह इन सब से अधिक कुछ और है क्या वह जैसा कि बहुत से लोग कहते हैं, “परमेश्वर का पुत्र” है?

“यीशु की वास्तविक उपस्थिति को महसूस किए बिना कोई भी व्यक्ति सुसमाचार को नहीं पड़ सकता है प्रत्येक वचन में उसका व्यक्तित्व स्पंदित होता है कोई भी मिथक ऐसे जीवन से भरा नहीं है- अल्बर्ट आइंस्टाइन”

यीशु के बारे में बाइबल क्या कहती है

इस अनुच्छेद में हम देखेंगे कि बाइबल यीशु के बारे में क्या कहती है। मनुष्य-यीशु के रूप में मानवता में प्रवेश करके हमारे साथ एक हो जाने की परमेश्वर इच्छा की खोज करने के लिए हमारे यात्रा में शामिल हो। फिर जाने कि कैसे यीशु ने हमें बचाने के लिए, हमारे पापों को क्षमा करने के लिए परमेश्वर के मेमने के रूप में क्रूस पर मृत्यु सही और यीशु किस प्रकार हमारे अंदर आत्मा के रूप में जो जीवन देती है जी सकता है

बाइबल में यीशु का जीवन

यीशु का जन्म और युवा अवस्था

2000 वर्ष से भी पहले, आदि के परमेश्वर ने नासरत में मरियम नामक एक मानव कुंवारी के गर्भ में अपनी आत्मा के माध्यम से खुद को उत्पन्न करके अपनी रचना में प्रवेश किया। मरियम ने परमेश्वर से भय मानने वाले व्यक्ति यूसुफ से विवाह किया, और यीशु नामक यथार्थ मानव बालक को यहूदिया के नगर बेतलेहेम में जन्म दिया। वे उसी देश के चरवाहों और ज्योतिषी द्वारा जिन्होंने यीशु के लिए सोना, लोबान और गंधरस उपहार भेंट में लाए और उसका आदर किया। बेतलेहेम से, यीशु और उसका परिवार मिस्र को गया, और तब इजराइल लौटकर नासरत नामक नगर में ठहरे।

यीशु बढ़ा हुआ, और 12 वर्ष की उम्र में अपने माता पिता के साथ फसह के वार्षिक पर्व के लिए यरूशलेम में मंदिर का दौरा किया। वह मंदिर में ही रह गया, तब उसके माता-पिता ने यह समझा कि वह यात्रियों के दूसरे दल के साथ होगा, मरियम और यूसुफ ने यीशु को मंदिर में जो उसके इर्द-गिर्द थे उनको उपदेश देते और उनसे प्रश्न करते पाया। मरियम ने यीशु को डांटा, कहा कि वे उसके लिए चिंतित थे, तब यीशु ने उनसे कहा कि वह अपने पिता के कार्यों में रुझान रखता है। यीशु अपने माता-पिता के साथ नासरत  वापस लौटा और वहां उसकी उन्नत और ज्ञान और कद में वृद्धि हुई।

यीशु की सेवकाई

यीशु ने सही मायने मे मानवता में दिव्य, पाप रहित जीवन पृथ्वी पर जिया। यीशु के चचेरे भाई, यहून्ना ने, पापों की क्षमा के लिए मनफिराव के बपतिस्मा का प्रचार किया। बहुत से लोगों का बपतिस्मा हुआ। जब यीशु का बपतिस्मा हुआ, पवित्र आत्मा कबूतर के रूप में सदेह उस पर उतरा। और यह आकाशवाणी हुई: मेरा प्रिय पुत्र है, मैं तुझ से प्रसन्न हूं (लूका 3:22)।

यीशु ने अपनी सेवकाई 30 वर्ष की आयु में शुरू की। गलील में अपनी सेवकाई में, उसने अनुग्रह की जुबली का प्रचार किया और उपदेश दिए, दुष्ट आत्माओं को निकाला, चंगाईया दि और सुसमाचार सुनाएं। उसने कुष्ठ-रोगी, लकवे के रोगी, मरते हुए को, और लहू के बहाव के साथ एक स्त्री को चंगा किया,  रोती हुई विधवा के एकलौते पुत्र को मृत्यु से जिलाया और बहुत से लोगों को चंगा किया। यीशु ने 12 प्रेरित को उसका अनुसरण करने, उससे सीखने, और उसके संदेशों को उसके पुनरुत्थान के बाद संपूर्ण संसार में फलाने के लिए नियुक्त किया। उसने अपने चेलों को सर्वोच्च नैतिकता की शिक्षा दी। उसने दृष्टांत के साथ शिक्षा दी, उसने अपने वास्तविक सगे-संबंधी की पहचान उन लोगों के रूप में की “जो परमेश्वर का वचन सुनकर और पालन करते हैं” (लूका 8:21)। तूफान को शांत किया, दुष्ट आत्मा की सेना को निकाला, अपने चेलों को अपनी सेवकाई फैलाने के लिए भेजा, पांच रोटी और दो मछलियों के साथ 5000 की भीड़ को खिलाया, और उसने अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान का खुलासा किया।

यीशु की गलील से यरूशलेम की सेवकाई में, उसने लोगों को निर्देश दिया कि उसका अनुसरण केसे करे, 70 चेलों को अपनी सेवकाई फैलाने के लिए नियुक्त किया, और स्वयं को उच्चतम नैतिकता के साथ अच्छे सामरी के रूप में चित्रित किया। यीशु ने प्रार्थना, जागरूकता, विश्वास योग्यता, पश्चाताप, और उसका अनुसरण करने के विषय में शिक्षा दी। यीशु ने त्रिएक परमेश्वर- पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा के उधार देने वाले प्रेम का भी खुलासा किया- पापियों की ओर एक खोई हुई भेड़ की तलाश में चरवाहे का, खोए हुए सिक्के की तलाश में एक स्त्री का, और खोए हुए पुत्र को ग्रहण करते हुए पिता के दृष्टांतो का उपयोग किया। यीशु ने अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान का दोबारा से खुलासा किया।

यीशु ने उन लोगों को बाहर निकाल दिया जो मंदिर में बेचने में, लुटेरों का अड्डा बनाने में, उसमें शिक्षा देने के द्वारा उसे अशुद्ध कर रहे थे, और वह मुख्य याजक, शास्त्री, प्राचीन और अन्य संप्रदाय की परीक्षा में सफल रहे, जिनमें फरीसी (यहूदीया का सबसे कठोर धार्मिक संप्रदाय), हेरोदीयन (वे लोग जो राजा हेरोदेश के शासन काल में ग्रीसी और रोमन तत्वों को यहूदी संस्कृति में लाने के लिए आए थे), और सदुसी (यहूदी धर्म के प्राचीन आधुनिकता वादी संप्रदाय) शामिल थे। यीशु ने चेलों को अपनी मृत्यु के लिए तैयार किया।

यीशु की मृत्यु

यीशु को उसके एक चेले, यहूदा ने धोखा दिया था, जिसने यीशु की जगह को चांदी के 30 सिक्कों के लिए बेच कर बता दिया था। यीशु मंदिर के मुख्य याजको और अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किया गया और महा याजक के घर में लाया गया। यीशु की आंखों पर पट्टियां बांधकर, उसका मजाक उड़ाया और उसको पीटा गया। तब उसे उस समय के सर्वोच्च यहूदी न्यायालय में लाया गया, सैन्हेद्रिन (यहूदी सभा घर), जिसने उसका न्याय किया क्योंकि उसने स्वीकार किया कि वह परमेश्वर का पुत्र था। सैन्हेद्रिन (यहूदी सभा घर) ने बाद में उसे रोमन शासन के अधीन कर दिया। पीलातुस और हेरोदेस, उन दोनों ने उसमें कोई अपराध न पाया। हालांकि, क्योंकि लोगों की भीड़ ऊंची आवाज में चिल्ला-चिल्लाकर पीछे पड़ गए कि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए । कायरतापूर्वक पीलातुस ने यीशु को क्रूस पर चढ़ाने के लिए रिहा कर दिया।

सूली पर लटकाए जाने के स्थान पर जाते समय, लोगों ने शिमौन नामक एक व्यक्ति को यीशु के पीछे-पीछे क्रूस लेकर चलने के लिए मनाया। उस स्थान पर जो खोपड़ी कहलाता है पहुंचे, यीशु को दो अपराधियों के बीच लगभग सुबह के 9:00 बजे सूली पर चढ़ाया गया। पहले 3 घंटे, उसने मनुष्य के सताव को सहा। मगर दोपहर से लेकर लगभग 3:00 बजे तक सारे देश में अंधकार छाया रहा, इस प्रकार परमेश्वर ने मनुष्य जाति के सारे पापों को यीशु पर डाल दिया और हमारी जगह पर उसका न्याय किया। यीशु परमेश्वर के मेमने के रूप में मारा गया कि अपना लहू बहाएं ताकि हम अपने पापों की क्षमा पाए। यूसुफ नामक एक मनुष्य जो सज्जन, धर्मी व धनी पुरुष था पीलातुस से यीशु का शव मांगा, उसने उसे उतारकर मलमल के कपड़े में लपेटा, एक नई कब्र में रखा और एक पत्थर से बंद कर दिया। रोमन सैनिकों ने कब्र का पहरा किया।

“यीशु परमेश्वर है जिसके पास हम अभिमान के बिना पहुंच सकते हैं जिसके सामने हम किसी निराशा के बिना खुद को विनम्र कर सकते हैं- ब्लेस पास्कल”

यीशु का पुनरुत्थान और आरोहण

3 दिनों के बाद, कुछ स्त्रियों में से जिन्होंने गलील में यीशु की सेवा की थी कब्र पर गई। उन्होंने पत्थर को कब्र पर से लूढ़का हुआ पाया, दो मनुष्य झलकते हुए वस्त्र पहने उनके निकट खड़े हो गए। मनुष्य, जो स्वर्गदूत थे, उन से कहा, “तुम जीवित को मरे हुए में क्यों ढूंढती हो? वह यहां नहीं है, परंतु वह जी उठा है। स्मरण करो कि जब वह गलील में ही था, उसने तुमसे कैसे कहा था: की अवश्य है मनुष्य का पुत्र पापी मनुष्य के हाथों में सौंपा जाएगा, क्रूस पर चढ़ाया जाएगा और तीसरे दिन जी उठेगा”(लूका 24:5-7)। स्त्रियों ने यह बातें पहिले प्रेरितो को बताई, उन्होंने उनका विश्वास नहीं किया। उन प्रेरितो में से एक, पतरस उठा और दौड़कर कब्र पर गया, और उसने तह किया हुआ मलमल का कपड़ा देखा, और उसने इस घटना पर आश्चर्य किया।

तब यीशु उनमें से दो प्रेरितो को मिला जो इम्माऊस नामक जगह जा रहे थे जो यरूशलेम से लगभग सात मील (11.1 किलोमीटर) की दूरी पर था। उसने उनके साथ बाते की, परंतु उन्होंने उसे ना पहचाना जब तक उसने उनके साथ रोटी ना तोड़ी और फिर वह गायब हो गया। दोनों चेले उसी समय यरूशलेम को गये की 11 प्रेरितो और उनके साथ के लोगों को बताएं। जब वह उन सब के बीच दिखाई दिया, वह घबरा गए कि वह एक भूत है, तो उसने उन लोगों से कहा, “मेरे हाथ और मेरे पैरों को देखो, क्योंकि भूत के मांस और हड्डियां नहीं होती जैसा कि तुम मुझ में देखते हो”(लूका 24:39)। उसने उबली हुई मछली का एक टुकड़ा भी खाया जो उसे दिया गया था। अगले 40 दिनों के दौरान, यीशु हमेशा उन लोगों के साथ उपस्थित रहता था, परंतु वह एक पल के लिए उनकी आंखों से ओझल हो जाता था, और दूसरे ही पल में उनको दिखाई देने लगता था। तब उसने प्रेरित और उनके साथ के लोगों को अधिकृत किया। “तब वह उन्हें बैतनिय्याह तक बाहर ले गया और अपने हाथ उठाकर उन्हें आशीष दी। जब वह उन्हें आशीष दे ही रहा था तो वह उनसे अलग हो गया और स्वर्ग पर उठा लिया गया” (लूका 24:50-51)।

यीशु जीवन दायक आत्मा है

उसके पुनरुत्थान में, यीशु आत्मा बन गया जो हमारी मनुष्य की आत्मा, हमारे अस्तित्व का सबसे भीतरी भाग में प्रवेश करने के द्वारा जीवन देती है चूंकि मसीह अब आत्मा है, हम परमेश्वर के जीवन को अपने आत्मा में प्राप्त कर सकते हैं। यह ऐसा है जिसको परमेश्वर का वचन नया जन्म पाना कहता है। इस जीवन को प्राप्त करने के लिए, हमें परमेशर के पास वापस आने और प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करने की जरूरत है। आप अभी सरल प्रार्थना को करने के द्वारा ऐसा कर सकते हैं:

प्रभु यीशु, मैं विश्वास करता हूं सब कुछ जो भी बाइबल आपके बारे में बताती है। मैं विश्वास करता हूं आप परमेश्वर का पुत्र है जो मेरे साथ जीने के लिए शरीर में देहधारी हुए। प्रभु यीशु, मुझे मेरे पापों से शुद्ध करो, मेरा उद्धार करो, और आत्मा के रूप में मेरे अंदर आए। प्रभु यीशु, मैं आपसे प्रेम करता हूं”।

ये सभी उदाहरण आयते “नए नियम पुनःप्राप्ति संस्करण ऑनलाइन”   http://online.recoveryversion.org, लिविंग स्ट्रीम मिनिस्ट्री द्वारा कॉपीराइट © 1997-2012 से लिये गए है।


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